हमारे शब्द ही हैं जो हमें औरों के करीब लाते हैं और हमारे शब्द ही हैं जो हमें औरों से दूर भी ले जाते हैं!
हमारे शब्द ही हैं जो हमें औरों के करीब लाते हैं और हमारे शब्द ही हैं जो हमें औरों से दूर भी ले जाते हैं!
आत्म-परिचय
डॉ. सारिका जी ने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. और पी-एच.डी. की उपाधि हाँसिल की। वर्तमान में एक यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी की प्रोफ़ेसर हैं।
खाक़सार मुकेश कुमार इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग का अध्ययन कर पहले तो निजी-शिक्षण से जुड़े रहे और अब स्व-अध्ययन के साथ-साथ मुक्त लेखन से जुड़े हैं। पढ़ने/पढ़ाने और लिखने का शौक/व्यसन बचपन से ही रहा है।
आत्मकथ्य
प्रकृति ने हमें सदैव अपनी ओर आकर्षित किया है। जन्म से लेकर अब तक हम उसके रहस्यों से ठगे-से रह गए हैं। वो नीला-नीला आकाश और उसमें बिखरे हुए तारे, रंग-बिरंगे फूल और उनकी भीनी-भीनी खुश्बू, रंग-बिरंगे पंखो वाली तितलियाँ, बारिश की ठंडी-ठंडी फुहार, मिट्टी की सौंधी-सौंधी महक, सूरज की सोने जैसी चमकती किरणें, जाड़े की कुनकुनी या मखमली धूप, कोयल की कँ-कूँ, पपीहे की पी-पी की रटन और भी न जाने कितना ही कुछ हमारे लिए आकर्षक रहस्य रहा है। बचपन से ही किताबों के प्रति एक अजीब सा आकर्षण था, या यूँ कहिए कि एक अजीब ही किस्म की दीवानगी थी और यह हमारा सौभाग्य रहा कि घर/परिवार में आध्यात्मिक एवं लिखने-पढ़ने का माहौल होने की वजह से बचपन से ही हिंदी भाषा, अपनी संस्कृति और साहित्य से विशेष प्रेम हो गया। ...किताबों से यह रिश्ता, यह दीवानगी और माँ सरस्वती की असीम कृपा का ही यह फल है कि हम कुछ सृजन कर पाए और अग्रजों का सदा यह स्नेह रहा कि उन्होंने हमारी कविता, लेख, समीक्षा आदि को विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं के साथ-साथ अंतर्जाल पर निरंतर प्रकाशित होने का सौभाग्य प्रदान किया और साथ ही विभिन्न साझा संकलनों में भी हमारी कविताएँ/हाइकू/क्षणिकाएँ/आलेख/समीक्षा आदि को सम्मिलित कर, हमें सदैव प्रोत्साहित कर हमारा मान बढ़ाया। यह उनका/आप सबका प्रेम ही है कि हमें अपनी पुस्तकें भी प्रकाशित करने की प्रेरणा मिली। इसके अतिरिक्त समय-समय पर विभिन्न संस्थाओं द्वारा आयोजित समारोहों में अतिथि, विशेष अतिथि एवं मुख्य अतिथि के रूप में विभिन्न विषयों पर अपने विचारों की प्रस्तुति एवं व्याख्यान देने का सुअवसर प्राप्त होता रहा है। हम तहे-दिल से आप सबका शुक्रिया अदा करते हैं।